Miracle of Medical Sciences : दुनिया में पहली बार इंसान के अंदर जेनेटिकली मोडिफाइड सूअर का दिल लगाया गया है। अमेरिका के डॉक्टर्स ने यह कारनामा कर दिखाया है, जिन्होंने एक 57 वर्षीय व्यक्ति में सफलतापूर्वक सूअर का दिल ट्रांसप्लांट किया है।
इसे एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है, जो ऑर्गन ट्रांसप्लांट की कमी से जूझ रही दुनिया के लिए एक नई उम्मीद जगाने वाला कदम है। दुनिया भर में हर दिन ऑर्गन ट्रांसप्लांट की कमी की वजह से सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है।

Miracle of Medical Sciences
महत्वपूर्ण बिन्दू
Miracle of Medical Sciences : दुनिया में पहली बार इंसान के अंदर जेनेटिकली मोडिफाइड सूअर का दिल लगाया गया है। अमेरिका के डॉक्टर्स ने यह कारनामा कर दिखाया है, जिन्होंने एक 57 वर्षीय व्यक्ति में सफलतापूर्वक सूअर का दिल ट्रांसप्लांट किया है।
इसे एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है, जो ऑर्गन ट्रांसप्लांट की कमी से जूझ रही दुनिया के लिए एक नई उम्मीद जगाने वाला कदम है। दुनिया भर में हर दिन ऑर्गन ट्रांसप्लांट की कमी की वजह से सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है।
विज्ञान ने प्रगति की राह पर चलते-चलते आज एक ऐसा मुकाम हासिल कर लिया है कि इंसानी जिस्म में सूअर का दिल भी धड़क सकता है। जी हाँ, ये कोई विज्ञान का उपहास नहीं है बल्कि मैरीलैंड में घटित घटना की हकीकत है।
वहाँ दिल की बीमारी से जूझ रहे एक आदमी के दिल में सूअर का दिल लगाया गया है और खास बात ये है कि इस हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद 57 वर्षीय व्यक्ति जीवित भी है।
अमेरिका में एक शख्स के शरीर में सूअर का दिल लगाए जाने की खबरों पर भारत के डॉक्टर ने कहा कि वे ऐसा 1997 में कर चुके हैं। 1997 का ये मामला तब काफी विवादित रहा था। यह प्रयोग करने से पहले डॉक्टर ने डेबिट बेनेट से मांगी थी इजाजत ।
अमेरिका में डेबिट बेनेट का हॉट पूरी तरह फेल हो गया था लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें कुछ उपकरणों और बाईपास सर्जरी से कुछ समय के लिए जिंदा रखा था बाद में उनको बताया गया कि अगर यह उपकरण हटा दिए जाएंगे तो आप की मृत्यु हो जाएगी।
ऐसे में आप बताइए कि यह उपकरण हटा दिया जाए या जो हमारे पास एक ऑप्शन है कि आप में सूअर का दिल लगा कर प्रयोग किया जाए।
तो उनका जवाब था कि इस दुनिया से हम तो जा ही रहे हैं तो क्यों न डॉक्टर की बात मानी जाए और कुछ समय के लिए ही सही लेकिन यह प्रयोग करने दिया जाए हो सकता है कि ऐसा करने से मैं कुछ समय और जीवित रह पाऊं।
डॉक्टर मोहम्मद मोइनुद्दीन यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के प्रोफेसर है जिनका कहना है कि यदि यह प्रयोग सफल हो गया तो आने वाले समय में यह लाखों लोगों के लिए एक वरदान साबित होगा।
क्या इंसान के शरीर में जानवर का दिल लगाया जा सकता है?
इंसान के शरीर में जानवर का दिल लगाया जाए या नहीं इस पर तो अभी वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। अगर आपके शरीर में कोई इंसान का अंग लगा दिया जाए तो उसे ट्रांसप्लांटेशन कहते हैं, लेकिन आपके शरीर में यदि किसी जानवर का कोई अंग लगा दिया जाए तो इसे जीनो ट्रांसप्लांटेशन कहते हैं।
आखिर सूअर का दिल ही क्यों चुना गया?
ऑर्गन ट्रांसप्लांट की रिपोर्ट के अनुसार सूअर का दिल इंसान में ट्रांसप्लांट करने के लिए उपयुक्त होता है लेकिन सूअर के सेल्स में एक अल्फा-गल शुगर सेल होता है। इस सेल को इंसान का शरीर एक्सेप्ट नहीं कर पाता है जिससे मरीज की मृत्यु भी हो सकती है।
इस परेशानी को दूर करने के लिए पहले ही सूअर को जेनेटिकली मॉडिफाइड किया गया है, इस ऑपरेशन में इस्तेमाल किया गया दिल यूनाइटेड थेरेप्यूटिक्स की सहायक कंपनी रेविविकोर से आया था।
भारत में भी होती है ट्रांसप्लांट के अभाव में ज्यादातर मौतें
भारत में हर साल किडनी, लिवर या हार्ट ट्रांसप्लांट जैसे ऑर्गन ट्रांसप्लांट के इंतजार में लाखों लोगों की मौत हो जाती है। भारत में हर साल कम से कम 50 हजार से ज्यादा लोगों को हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन उनमें से महज कुछ सौ लोगों को ही ये सुविधा मिल पाती है। भारत में हार्ट ट्रांसप्लांटेशन के लिए महज 300 ही सेंटर हैं, जिनमें ज्यादातर दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में हैं।
वैज्ञानिकों ने यह प्रयोग करने से पहले सूअर में ऐसा क्या परिवर्तन किया था?
वैज्ञानिक ने यह प्रयोग करने से सूअर के अल्फा-गल शुगर सेल को निकाल कर इंसान का सेल लगा दिया था। यह प्रक्रिया जितनी आसान लग रही है इतना आसान नहीं है उसके चेंज करने की पूरी प्रक्रिया जेनेटिकली मॉडिफाइड करना कहलाता है।
जेनेटिकली मॉडिफाइड की पूरी प्रक्रिया बायोटेक्नोलॉजी के माध्यम से की जाती है। बायोटेक्नोलॉजी के माध्यम से जो जीव उत्पन्न होता है उसे जेनेटिकली मॉडिफाइड जीव कहा जाता हैं।
ऐसा करने के लिए जो मादा सूअर है उसके अंड कोशिका से उसके अल्फा-गल शुगर सेल को हटा दिया जाता है और फिर वापस उस एंड कोशिका को मादा सूअर के गर्भ में रख दिया जाता है और उसके निषेचन की प्रक्रिया को पूरा किया जाता है। उस निषेचन के बाद जो सूअर का बच्चा पैदा हुआ है उससे ही यह दिल निकाल कर इंसान की शरीर में लगाया गया है।
पहले भी हो चुके हैं इस तरह के प्रयोग
जनवरी 1993 में 62 साल के एक शख्स में लंगूर का लिवर ट्रांसप्लांट किया गया था लेकिन 26 दिन बाद ही उसकी मौत हो गई थी। 1960 में 13 लोगों को चिम्पाजी की किडनी लगाई गई थी, इनमें से 12 लोगों की ट्रांसप्लांट के हफ्ते भर के अंदर मौत हो गई थी, जबकि एक मरीज नौ और महीने तक जिंदा रहा था।
इसके बाद भी इसकी कुछ नाकाम कोशिशें हुईं। जैसे जून 1992 में पहली बार इंसान के शरीर में लंगूर का लिवर ट्रांसप्लांट किया गया था। ट्रांसप्लांट के 70 दिन बाद मरीज की ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई।
जिनोट्रांसप्लांटेशन की प्रक्रिया 1984 में हुई एक घटना के बाद लगभग बंद हो गई। 1984 में कैलिफोर्निया में बेबी फाइ (Baby Fae) नामक दिल की बीमारी के साथ पैदा हुए बच्चे में लंगूर का दिल ट्रांसप्लांट किया गया था, लेकिन इस ट्रांसप्लांट के कुछ ही महीने बाद बच्चे की मौत हो गई थी।
1984 में एक बच्चे के सरीर में बबून ( बंदर की एक प्रजाति) का दिल ट्रांसप्लांट किया गया था, लेकिन वह बच्चा सर्जरी के 21 दिन तक ही जिंदा रह पाया था ।